सुरेश बाबू मिश्रा

सैल्यूट

सुरेश बाबू म्श्रा

गुलमर्ग पुलिस कन्ट्रोल रूम में एसपी सिटी जावेद अख्तर आज का समाचारपत्र पढ़ रहे थे। सुबह के ग्यारह बज गए थे मगर अभी तक सूर्य देवता के दर्शन नहीं हुए थे। चारों तरफ बर्फबारी अब भी जारी थी।

एक कांस्टेबिल कॉफी लाकर एसपी सिटी की टेबल पर रख गया। वे कॉफी पीने लगे, तभी उनके पास रखी टेलीफोन की घन्टी बज उठी। जावेद अख्तर ने फोन का चोगा उठाते हुए कहा, “एसपी सिटी जावेद अख्तर हेयर।“

पुण्यतिथि पर विशेष- जन गण मन के रचयिता रबीन्द्रनाथ टैगोर

बीन्द्रनाथ टैगोर की गणना विश्व के प्रमुख साहित्यकारों में होती है। वे एशिया के एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिन्हें साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होंने साहित्य की हर विधा में अपनी लेखनी चलाई। कई विश्व प्रसिद्ध उपन्यास, कहानियां, कविताएं एवं गीत लिखे। वे दुनिया के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। उनकी एक रचना “जन गण मन” भारत का राष्ट्रगान है और दूसरी रचना “आमार सोनार बांग्ल”  बांग्लादेश का राष्ट्रगान है।

कलम बरेली की : बरेली की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना का सुरम्य गुलदस्ता

इस कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसके लेखक ने बहुत प्रमाणिकता के साथ पत्रकारिता एवं सांस्कृतिक चेतना से जुड़े अतीत की गौरवगाथा प्रस्तुत की है। लेखक ने अपनी कृति में अतीत के अत्यंत दुर्लभ चित्रों एवं लेखों को मूल रूप में प्रकाशित किया है, जिससे अतीत की पत्रकारिता एवं सामाजिक चेतना की गौरवगाथा अधिक प्रमाणित एवं सजीव प्रतीत होती है।

आइसोलेट

रीमा की नजरें बार-बार घड़ी पर जा टिकतीं। शेखर को अस्पताल गए हुए बीस घंटे से ज्यादा हो गए थे। अस्पताल से फोन आने पर डॉक्टर शेखर सुबह चार बजे ही अस्पताल चले गए थे। अब रात के नौ बज गए थे मगर शेखर का अभी तक कोई अता-पता नहीं था।
रीमा ने दो-तीन बार फोन भी किया था मगर शेखर का फोन नहीं उठा था। पांच-छह दिन से कोरोना के कारण शेखर की व्यस्तता बहुत बढ़ गई थी।
रीमा की निगाहें दरवाजे पर ही टिकी हुई थीं। जरा-सी आहट होती तो उसे लगता शेखर आ गए। वह बार-बार उठकर देखती।

बेबसी

लॉकडाउन में थोड़ी देर के लिए खुली हवा में घूमने के लिए गुप्ता जी मेन रोड पर आ गए। आजकल वाहनों की आवाजाही बंद होने के कारण रोड पर सन्नाटा पसरा हुआ था। गुप्ता जी मुश्किल से एक फर्लांग चल पाए होंगे कि तभी सामने से आ रहे एक नौजवान ने अपनी मोटरसाइकिल बिल्कुल उनके पास आकर रोक दी।
“क्या बात है?” गुप्ता जी ने प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी ओर देखते हुए पूछा।