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रामधारी सिंह दिनकर : विद्रोही कवि जो बन गया राष्ट्र कवि

  • जयन्ती 23 सितम्बर पर विशेष 

कुरुक्षेत्र एवं उर्वशी जैसी कालजयी कृतियों के रचयिता रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी साहित्य के एक जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं और उनका यश कभी मद्धम नहीं होगा। स्वंत्रता से पहले वह एक विद्रोही कवि के रूप में जाने जाते थे। स्वतंत्रता के बाद उनको राष्ट्र कवि के रूप में पहचान मिली। वे एक ख्यातिलब्ध लेखक, ओजस्वी कवि एवं सफ़ल निबन्धकार थे। उनकी रचनाएं हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। द्वापर युग की ऐतिहासिक घटना महाभारत पर आधारित उनके प्रबन्ध काव्य कुरुक्षेत्र को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ काव्यों में 74वाँ स्थान दिया गया है।

ओजोन बिना मानव जीवन

पराबैंगनी किरणों से, ये धरती आज बचानी है ।

क्या ओजोन परत है ये, जन- जन को राह दिखानी है ।।

 

   कवच बचेगा धरती का, ऐसे उपाय अपनायें हम ।

   सभी सुरक्षित काम करें, हर मानव को समझायें हम ।।

   वृक्षों की हरियाली से, ये धरती हमें सजानी है ।।

   पराबैंगनी किरणों से...

 

ओजोन बिना मानव का, जीवन मुश्किल हो जायेगा ।

गर ओजोन छिद्र बढ़ेगा,  कोई भी ना बच पायेगा ।।

कैसे हम बच पायेंगे, ये बात आज समझानी है ।।

 

   जलवायु बदलाव गति को, मिलकर करें नियंत्रण हम सब ।

   मांट्रियल समझौते का, पालन सभी करेंगे हम सब ।

दुष्यन्त कुमार : गजलकार जो बन गया जन-जन की आवाज

दुष्यन्त कुमार

-जयंती 1 सितम्बर पर विशेष-

दुष्यन्त कुमार का नाम हिंदी साहित्य में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उन्होँने हिंदी गजल के क्षेत्र में नये-नये आयाम गढ़े। उनकी कालजयी गजलों ने साहित्य जगत में धूम मचा दी। आज कोई भी राजनीतिक सभा हो या फिर किसी यूनियन का धरना-प्रदर्शन, कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या फिर सहित्यिक गोष्ठी, सभी में वक्ताओं के मुंह से दुष्यन्त कुमार की शेरों की गूँज अवश्य सुनायी देती है ।

 

दुष्यन्त कुमार : गजलकार जो बन गया जन-जन की आवाज

दुष्यन्त कुमार

-जयंती 1 सितम्बर पर विशेष-

दुष्यन्त कुमार का नाम हिंदी साहित्य में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। उन्होँने हिंदी गजल के क्षेत्र में नये-नये आयाम गढ़े। उनकी कालजयी गजलों ने साहित्य जगत में धूम मचा दी। आज कोई भी राजनीतिक सभा हो या फिर किसी यूनियन का धरना-प्रदर्शन, कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या फिर सहित्यिक गोष्ठी, सभी में वक्ताओं के मुंह से दुष्यन्त कुमार की शेरों की गूँज अवश्य सुनायी देती है ।

 

सैल्यूट

सुरेश बाबू म्श्रा

गुलमर्ग पुलिस कन्ट्रोल रूम में एसपी सिटी जावेद अख्तर आज का समाचारपत्र पढ़ रहे थे। सुबह के ग्यारह बज गए थे मगर अभी तक सूर्य देवता के दर्शन नहीं हुए थे। चारों तरफ बर्फबारी अब भी जारी थी।

एक कांस्टेबिल कॉफी लाकर एसपी सिटी की टेबल पर रख गया। वे कॉफी पीने लगे, तभी उनके पास रखी टेलीफोन की घन्टी बज उठी। जावेद अख्तर ने फोन का चोगा उठाते हुए कहा, “एसपी सिटी जावेद अख्तर हेयर।“

पुण्यतिथि पर विशेष- जन गण मन के रचयिता रबीन्द्रनाथ टैगोर

बीन्द्रनाथ टैगोर की गणना विश्व के प्रमुख साहित्यकारों में होती है। वे एशिया के एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिन्हें साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होंने साहित्य की हर विधा में अपनी लेखनी चलाई। कई विश्व प्रसिद्ध उपन्यास, कहानियां, कविताएं एवं गीत लिखे। वे दुनिया के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनीं। उनकी एक रचना “जन गण मन” भारत का राष्ट्रगान है और दूसरी रचना “आमार सोनार बांग्ल”  बांग्लादेश का राष्ट्रगान है।

कलम बरेली की : बरेली की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना का सुरम्य गुलदस्ता

इस कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसके लेखक ने बहुत प्रमाणिकता के साथ पत्रकारिता एवं सांस्कृतिक चेतना से जुड़े अतीत की गौरवगाथा प्रस्तुत की है। लेखक ने अपनी कृति में अतीत के अत्यंत दुर्लभ चित्रों एवं लेखों को मूल रूप में प्रकाशित किया है, जिससे अतीत की पत्रकारिता एवं सामाजिक चेतना की गौरवगाथा अधिक प्रमाणित एवं सजीव प्रतीत होती है।

ये कोरोना हारेगा

धर्मयुद्ध के कर्मक्षेत्र से, ये कोरोना भागेगा।
आज नहीं तो कल निश्चय ही, ये कोरोना हारेगा।
संवेदन से हीन शक्ति से, ये संघर्ष हमारा है।
हम तलाश करके मानेंगे, जिसने दिया सहारा है।
हांफ चुके सब बहुत दिनों अब, ये कोरोना हांफेगा।
आज नहीं तो...
सारा विश्व परेशां इससे, अजब अनोखा दुश्मन है।
नतमस्तक मानव दीखा चुप, चुप दीखा हर आंगन है।
काफी नाच नचाया इक दिन, ये कोरोना नाचेगा।
आज नहीं तो...
वैज्ञानिक शक्ति का इसको, कुछ अंदाज नहीं मित्रों।
उछलकूद सब बंद करेंगे, हर आवाज हमीं मित्रों।

आइसोलेट

रीमा की नजरें बार-बार घड़ी पर जा टिकतीं। शेखर को अस्पताल गए हुए बीस घंटे से ज्यादा हो गए थे। अस्पताल से फोन आने पर डॉक्टर शेखर सुबह चार बजे ही अस्पताल चले गए थे। अब रात के नौ बज गए थे मगर शेखर का अभी तक कोई अता-पता नहीं था।
रीमा ने दो-तीन बार फोन भी किया था मगर शेखर का फोन नहीं उठा था। पांच-छह दिन से कोरोना के कारण शेखर की व्यस्तता बहुत बढ़ गई थी।
रीमा की निगाहें दरवाजे पर ही टिकी हुई थीं। जरा-सी आहट होती तो उसे लगता शेखर आ गए। वह बार-बार उठकर देखती।

अनुपमा का प्रेम

ग्यारह वर्ष की उम्र से ही अनुपमा उपन्यास पढ़-पढ़कर मस्तिष्क को एकदम बिगाड़ बैठी थी। वह समझती थी, मनुष्य के हृदय में जितना प्रेम, जितनी माधुरी, जितनी शोभा, जितना सौंदर्य, जितनी तृष्णा है,सब छान-बीनकर, साफ कर उसने अपने मस्तिष्क के भीतर जमा कर रखी है। मनुष्य-स्वभाव, मनुष्य-चरित्र, उसका नख दर्पण हो गया है। संसार में उसके लिए सीखने योग्य वस्तु और कोई नहीं है, सब कुछ जान चुकी है, सब कुछ सीख चुकी है। सतीत्व की ज्योति को वह जिस प्रकार देख सकती है, प्रणय की महिमा को वह जिस प्रकार समझ सकती है,संसार में और भी कोई उस-जैसा समझदार नहीं है, अनुपमा इस बात पर किसी तरह भी विश्वास नहीं कर पाती। अनु ने सोचा-“वह

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