कलम बरेली की : बरेली की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना का सुरम्य गुलदस्ता

वरिष्ठ पत्रकार निर्भय सक्सेना द्वारा सम्पादित कृति “कलम बरेली की” बरेली की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का ऐतिहासिक दस्तावेज है। इसमें यहां की सांस्कृतिक चेतना पत्रकारिता, साहित्य, इतिहास और यहां की विकास यात्रा के विविध रंग बिखरे पड़े हैं। बरेली पर शोध करने वाले शोध छात्र-छात्राओं के लिए यह कृति इनसाइक्लोपीडिया सिद्ध होगी ऐसा मेरा मानना है।
निर्भय सक्सेना एक वरिष्ठ पत्रकार हैं। बरेली की पत्रकारिता की विकास यात्रा में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है और इसकी स्पष्ट झलक हमें इस कृति में देखने को मिलती है। बरेली में पत्रकारिता के उद्भव और विकास का बड़ा सटीक एवं रोचक वर्णन करते हुए निर्भय सक्सेना लिखते हैं कि स्वतंत्रता से पहले यहां आम बोल-चाल की भाषा उर्दू ही थी। इसलिए यहां पत्रकारिता का उद्भव भी उर्दू भाषा के समाचारपत्र के रूप में हुआ। यहां से सन् 1872 में सईद अहमद के सम्पादन में पहले उर्दू साप्ताहिक समाचार पत्र “रोजाना“ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इस पत्र का प्रकाशन लीथोग्राफी के जरिए होता था और यह फर्राशी टोला से प्रकाशित होता था। इस समाचारपत्र का मूल्य उस समय एक आना था। सन् 1919 में इस समाचारपत्र के सम्पादक कलम के सिपाही बन गए। इसमें केवल खबरें ही छपती थीं।
बरेली में हिंदी भाषा का पहला साप्ताहिक समाचारपत्र सन् 1933 में प्रकाशित हआ। इस समाचारपत्र का नाम था “प्रदीप“ और इसके सम्पादक थे पंडित राधेश्याम कथावाचक। सन् 1936 में बरेली का प्रथम हिंदी दैनिक समाचारपत्र “दैनिक हिंदी कांग्रेस“ था। इस समाचारपत्र के संपादक चंद्रप्रकाश थे। इसकी गणना राष्ट्रवादी समाचारपत्रों में होती थी और इसमें रुहेलखंड क्षेत्र में आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी से पहले छपने वाले प्रमुख राष्ट्रवादी विचारधारा के पत्रों में “स्वराज्य“, “हलचल“, “कायस्थ समाचार“, “इंसाफ“, “नूरे बरेली“ आदि समाचारपत्र प्रमुख थे।
देश की स्वतंत्रता के बाद बरेली में समाचार पत्रों की एक बाढ़-सी आ गई। जन जागरण की इस नई लहर में प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र “बरेली समाचार“, “बरेली गजट“, “युग संदेश“, “सत्यम्“, “बरेली एक्सप्रेस“, “पांचाल भूमि“, “जागो जवान“ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। 17 जनवरी सन् 1969 को बरेली के प्रेमनगर से हिंदी दैनिक समाचारपत्र “अमर उजाला“ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। 11 फरवरी 1974 को दैनिक समाचारपत्र दैनिक “विश्व मानव“ बरेली से छपना शुरू हुआ। 1989 में बरेली से 'दैनिक जागरण' एवं 'दैनिक आज' का भी प्रकाशन शुरू हो गया। इसके कुछ वर्षों बाद “दैनिक हिंदुस्तान“ भी बरेली से प्रकाशित होने लगा। इन समाचारपत्रों का प्रकाशन निरंतर जारी है। विगत कुछ वर्षों से दैनिक समाचारपत्र “अमृत विचार“ का प्रकाशन भी शुरू हुआ है। इस प्रकार बरेली पत्रकारिता के क्षेत्र में नित नए-नए आयाम गढ़ रहा है।
निर्भय सक्सेना के अनुसार बरेली में पत्रकारिता का परचम फहराने वालों में पत्रकार जेबी सुमन, धर्मपाल गुप्ता शलभ, रामदयाल भार्गव, राकेश कोहरवाल, ज्ञान सागर वर्मा, दिनेश चंद्र शर्मा ‘पवन’, कमल कांत शर्मा, ब्रजपाल सिंह बिसारिया, चंद्रकांत त्रिपाठी, गजेंद्र त्रिपाठी, राजेश सिंह श्रीनेत, संजीव पालीवाल, इकबाल रिजवी, रघुवीर चौहान, अजीत सक्सेना, शम्भू दयाल वाजपेयी, अमित अवस्थी, संजीव गंभीर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
इस कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसके लेखक ने बहुत प्रमाणिकता के साथ पत्रकारिता एवं सांस्कृतिक चेतना से जुड़े अतीत की गौरवगाथा प्रस्तुत की है। लेखक ने अपनी कृति में अतीत के अत्यंत दुर्लभ चित्रों एवं लेखों को मूल रूप में प्रकाशित किया है, जिससे अतीत की पत्रकारिता एवं सामाजिक चेतना की गौरवगाथा अधिक प्रमाणित एवं सजीव प्रतीत होती है। इतने लम्बे समय तक चित्रों एवं लेखों को संजोकर रखना और उन्हें मूलरूप में कृति में प्रकाशित करना निश्चित रूप से दुरूह एवं श्रमसाध्य कार्य है और इसके लिए निर्भय सक्सेना बधाई एवं साधुवाद के पात्र हैं।
कृति में कायस्थ समाज की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत एवं बरेली के विकास में कायस्थ समाज की प्रमुख विभूतियों द्वारा दिये गए सक्रिय योगदान की विवेचना भी बड़े रोचक एवं प्रभावी ढंग से की गई है। इससे कृति की उपादेयता और बढ़ गई है। यह निर्विवाद सत्य है कि कायस्थ समाज हमारे देश का एक प्रबुद्ध वर्ग है और देश के विकास में उसकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रस्तुत कृति में बरेली के विकास एवं सामाजिक चेतना के विविध आयामों में कायस्थ समाज की विभिन्न विभूतियों द्वारा किए गए कार्यों की सराहना बड़े ही मुक्त कंठ से की गई है। लेखक के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन लाल सिन्हा, स्वतंत्रता सेनानी शांति शरण विद्यार्थी, फतेहबहादुर सक्सेना, डॉ दिनेश जौहरी, निरंकार देव सेवक, केपी सक्सेना, किशन सरोज, पीसी आजाद, सावित्री श्याम, श्योराज बहादुर, डॉ अरुण कुमार सक्सेना, मुंशी प्रेम नारायण सक्सेना और सुरेंद्र बीनू सिन्हा जैसी विभूतियों ने जीवन के विविध क्षेत्रों में कायस्थ समाज के गौरव को बढ़ाया है।
कृति में बरेली की गंगा जमुनी संस्कृति के विविध रंग बिखरे पड़े हैं। बरेली का अतीत साझा विरासत एवं साझा शहादत की एक नायाब मिसाल है। लेखक ने बरेली के सभी धर्मों के प्रमुख धार्मिक स्थलों यहां की रवायतों एवं परम्पराओं, आपसी मेल-मिलाप, भाईचारे का वर्णन बड़ी रोचकता एवं प्रमाणिकता के साथ किया है।
यह कृति “कलम बरेली की“ यहां के समग्र अतीत का एक नायाब आइना है। इसे बरेली की समृद्ध सांस्कृतिक चेतना एवं विरासत का सुरम्य गुलदस्ता कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। बरेली की सांस्कृतिक चेतना, पत्रकारिता के उद्भव एवं विकास की यात्रा, शैक्षिक परिदृश्य तथा सामाजिक पहलुओं का अध्ययन करना है तो इसके लिए यह कृति पथ प्रदर्शिका सिद्ध होगी। मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि यह कृति पाठकों द्वारा निश्चित रूप से सराही जाएगी। ऐसी अद्भुत कृति के सम्पादित करने के लिए निर्भय सक्सेना को बहुत-बहुत बधाई एवं साधुवाद।
सुरेश बाबू मिश्रा
(साहित्य भूषण से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार)