आइसोलेट

रीमा की नजरें बार-बार घड़ी पर जा टिकतीं। शेखर को अस्पताल गए हुए बीस घंटे से ज्यादा हो गए थे। अस्पताल से फोन आने पर डॉक्टर शेखर सुबह चार बजे ही अस्पताल चले गए थे। अब रात के नौ बज गए थे मगर शेखर का अभी तक कोई अता-पता नहीं था।
रीमा ने दो-तीन बार फोन भी किया था मगर शेखर का फोन नहीं उठा था। पांच-छह दिन से कोरोना के कारण शेखर की व्यस्तता बहुत बढ़ गई थी।
रीमा की निगाहें दरवाजे पर ही टिकी हुई थीं। जरा-सी आहट होती तो उसे लगता शेखर आ गए। वह बार-बार उठकर देखती।
एक तो रीमा वैसे ही परेशान थी ऊपर से उसके पांच वर्षीय बेटे राहुल ने सवाल पर सवाल पूछ कर उसका बुरा हाल कर रखा था-“मम्मी पापा अभी तक क्यों नहीं आए? वह कहां रह गए? मुझे पापा की बहुत याद आ रही है। मुझे पापा चाहिए। उन्हें फोन करके बुलाओ ना मम्मी।” वह बार-बार यही रट लगाए पड़ा था।
तभी कालबैल बज उठी। रीमा ने उठकर दरवाजा खोला। सामने शेखर को देखकर रीमा के मुरझाए चेहरे पर मुस्कान आ गई।
उसने आगे बढ़कर शेखर के हाथ से ब्रीफकेस लेना चाहा। मगर शेखर बोला, “मुझसे कम से कम एक मीटर दूर रहो रीमा।“
“क्यों?“ रीमा ने हैरानी से उसकी ओर देखते हुए पूछा। “जांच में मुझे कोरोना पॉजटिव पाया गया है।” शेखर बैठक में पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोला।
“क्या?” रीमा के चेहरे पर विषाद की गहरी छाया झलकने लगी थी। तब तक उसका बेटा राहुल भी अन्दर से बैठक में आ गया था। शेखर को देखकर वह चहकता हुआ बोला-“पापा आ गए। पापा आ गए।”
अपने दोनों हाथ फैलाकर वह शेखर की ओर दौड़ा।
शेखर के इशारे पर रीमा ने उसे बीच में ही पकड़ लिया और गोद में उठा लिया। वह चिल्ला रहा था-“मम्मी मुझे पापा के पास जाने दो। मुझे उनके साथ खेलना है। मुझे पापा के पास ही रहना है।”
रीमा की आंखों में आंसू छलक आए। बड़ी कठिनाई से उसने अपने आंसुओं को रोका। शेखर के चेहरे पर बेबसी साफ झलक रही थी।
शेखर बोला-“रीमा मुझे चौदह दिन तक अस्पताल में आइसोलेशन में रहना होगा। मैं तुम्हें यही बताने तथा तुमसे और राहुल से मिलने आया था।”
“मैं भी आपके साथ अस्पताल चलूंगी।” रीमा भावुक स्वर में बोली।
“पागल मत बनो रीमा। तुम्हें यहां रहकर अपना और राहुल का ख्याल रखना है। मेरी देखभाल करने के लिए वहां स्टाफ है।” शेखर उसे समझाते हुए बोला।
“मगर मैं आपको अकेले नहीं जाने दूंगी।” रीमा कातर स्वर में बोली।
“कैसी बातें कर रही हो रीमा। तुम एक डॉक्टर की पत्नी हो। अगर तुम ही इस तरह हिम्मत हार जाओगी तो हम कोरोना को कैसे हरा पाएंगे।” शेखर ने कहा।
“मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ?” रीमा उसकी ओर देखते हुए बोली।
“घबराओ नहीं रीमा मुझे कुछ नहीं होगा। मेरी एक बात गांठ बांध लो। कोरोना के खिलाफ इस जंग में हमारे पास सोशल डिस्टेन्स ही वह हथियार है जिसके बल पर हम यह जंग जीत सकते हैं।” शेखर ने उसे दिलासा देते हुए कहा।
रीमा आगे कुछ नहीं बोली।
शेखर ने उससे कहा-“अब मुझे जाना होगा रीमा।” रीमा ने सहमति में सिर हिला दिया। राहुल को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह हैरान खड़ा अपने पापा को जाते हुए देख रहा था।