वो अड्डे वो पेड़ Submitted by Gajendra on Sun, 07/26/2020 - 18:45 बरेली, मेरा गृह नगर। डेढ़ दशक से भी ज्यादा हो गया, यहां मेहमान के जैसे ही आना-जाना हो पाया। अब जब फुसर्त से लौटा हूं तो मानो बचपन लौट आया है। पैंट की जेब में हाथ डाले आइटीआर कॉलोनी की तरफ निकल लिया। ओह!Tags: अड्डेबाज-वो अड्डे वो पेड़गजेंद्र त्रिपाठी-अड्डेबाजअडेडबाजगजेंंद्र त्रिपाठी