नास्तिक Submitted by Gajendra on Sun, 08/09/2020 - 18:14 तुम सीमाओं के प्रेमी हो, मुझको वही अकथ्य है, मुझको वह विश्वास चाहिए जो औरों का सत्य है । मेरी व्यापक स्वानुभूति में क्या जानो, क्या बात है सब-कुछ ज्यों कोरा काग़ज़ है, यहाँ कोई न घात है ।Tags: नास्तिकरांगेय राघवरांगेय राघव की कविता- नास्तिक