पिया चली फगनौटी कैसी गंध उमंग भरी
Submitted by Gajendra on Sun, 08/23/2020 - 19:02पिया चली फगनौटी कैसी गंध उमंग भरी
ढफ पर बजते नये बोल, ज्यों मचकीं नई फरी।
चन्दा की रुपहली ज्योति है रस से भींग गई
कोयल की मदभरी तान है टीसें सींच गई।
दूर-दूर की हवा ला रही हलचल के जो बीज
ममाखियों में भरती गुनगुन करती बड़ी किलोल।
मेरे मन में आती है बस एक बात सुन कन्त
क्यों उठती है खेतों में अब भला सुहागिनि बोल?
सी-सी-सी कर चली बड़ी हचकोले भरके डीठ
पल्ला मैंने सांधा अपना हाय जतन कर नींठ।
ढफ के बोल सुनूँ यों कब तक सारी रैन ढरी
पिया चली फगनौटी अब तो अँखिया नींद भरी।