हनुमान जी

माँ सीता की रसोई और हनुमान जी का भोजन

घटना उस समय की है जब श्री राम और देवी सीता वनवास की अवधि पूरी करके अयोध्या लौट चुके हैं। अन्य सब लोग तो श्री राम के राज्याभिषेक के उपरांत अपने अपने राज्यों को लौट गए, किंतु हनुमान जी ने श्री राम के चरणों में रहने को ही जीवन का लक्ष्य माना।
एक दिन देवी सीता के मन में आया कि हनुमान ने लंका में आकर मुझे खोज निकाला और फिर युद्ध में भी श्री राम को अनुपम सहायता की, अब भी अपने घर से दूर रह कर हमारी सेवा करते हैं, तो मुझे भी उनके सम्मान में कुछ करना चाहिए। यह विचार कर उन्होंने हनुमान को अपनी रसोई से भोजन के लिए आमंत्रित कर डाला माँ स्वयं पका कर खिलाएँगी आज अपने पुत्र हनुमान को।