प्रेमचंद की कहानी

ठाकुर का कुआं

जोखू ने लोटा मुंह से लगाया तो पानी में सख़्त बदबू आई। गंगी से बोला,‘‘यह कैसा पानी है? मारे बास के पिया नहीं जाता। गला सूखा जा रहा है और तू सड़ा पानी पिलाए देती है!’’
गंगी प्रतिदिन शाम पानी भर लिया करती थी। कुआं दूर था, बार-बार जाना मुश्क़िल था। कल वह पानी लाई, तो उसमें बू बिल्कुल न थी, आज पानी में बदबू कैसी! लोटा नाक से लगाया, तो सचमुच बदबू थी। ज़रूर कोई जानवर कुएं में गिरकर मर गया होगा, मगर दूसरा पानी आवे कहां से?
ठाकुर के कुएं पर कौन चढ़ने देगा? दूर से लोग डांट बताएंग। साहू का कुआं गांव के उस सिरे पर है परंतु वहां भी कौन पानी भरने देगा? कोई तीसरा कुआं गांव में है नहीं।