रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविता वधू

वधू

“बेला हो गई है, चल पानी भर लायें।”
मानो कोई दूर पर पहचाने स्वर में
पुकार रहा है-
कहाँ है वह छाया सखी,
कहाँ है वह जल,
कहाँ है वह पक्का घाट,
कहाँ है वह अश्वत्थ-तल!
घर के इक कोने में
मैं अकेली और अनमनी बैठी थी,
मानो तभी किसी ने पुकारा- 'चल पानी भर लायें