रवीन्द्रनाथ ठाकुर

जन-गण-मन

जन-गण-मन अधिनायक जय हे भारत-भाग्य-विधाता!
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जयगाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे भारत-भाग्य-विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।
अहरह तव आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार बाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी
पूरब पश्चिम आसे तव सिंहासन-पाशे
प्रेमहार हय गाँथा।
जन-गण-ऐक्य-विधायक जय हे भारत-भाग्य-विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

वधू

“बेला हो गई है, चल पानी भर लायें।”
मानो कोई दूर पर पहचाने स्वर में
पुकार रहा है-
कहाँ है वह छाया सखी,
कहाँ है वह जल,
कहाँ है वह पक्का घाट,
कहाँ है वह अश्वत्थ-तल!
घर के इक कोने में
मैं अकेली और अनमनी बैठी थी,
मानो तभी किसी ने पुकारा- 'चल पानी भर लायें

निष्फल कामना

सूरज डूब रहा है
वन में अंधकार है, आकाश में प्रकाश।
संध्या आँखें झुकाये हुए
धीरे-धीरे दिन के पीछे चल रही है।
बिछुड़ने के विषाद से श्रांत सांध्य बातास
कौन जाने बह भी रहा है की नहीं।
मैं अपने दोनों हाथों में तुम्हारे हाथ लेकर
प्यासे नयनों से तुम्हारी आँखों के भीतर झाँक रहा हूँ।