कविता-गीत

तोप

कम्पनी बाग़ के मुहाने पर
धर रखी गई है यह 1857 की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल
विरासत में मिले
कम्पनी बाग की तरह
साल में चमकायी जाती है दो बार
सुबह-शाम कम्पनी बाग में आते हैं बहुत से सैलानी
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी जबर
उड़ा दिये थे मैंने
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के छज्जे
अपने ज़माने में
अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फारिग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियाँ ही अक्सर करती हैं गपशप
कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं
ख़ासकर गौरैयें

कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

बनैला संपादक

आया था वह नया संपादक
दिल्ली से वाया लखनऊ-
कार से
उसके आने से पहले ही पहुंच चुकी थी
उसके किस्सों की फेहरिस्त
और वह लिस्ट भी कि
किस-किस की बिगाड़ेगा वह
ताकि फैल सके आतंक
और स्थापित हो सके एकछत्र साम्राज्य।

तुलसी जयंती पर तुलसी चालीसा*

तुलसी चालीसा*  तू कहते हैं राम को,ल से लक्ष्मण जान। सी का मतलब मातु सिय, दास बसे हनुमान।। जय तुलसी हिंदी रखवारी। राम भगत संतन सुखकारी।।1 सावन सुदि सातम शनिवारा। तुलसी बाल्मीक अवतारा।।2

तुलसी चालीसा*
तू कहते हैं राम को,ल से लक्ष्मण जान।
सी का मतलब मातु सिय, दास बसे हनुमान।।
जय तुलसी हिंदी रखवारी।
राम भगत संतन सुखकारी।।1
सावन सुदि सातम शनिवारा।
तुलसी बाल्मीक अवतारा।।2
चित्रकूट राजापुर ग्रामा।
उत्तर भूमी पावन धामा।।3
पिता आतम माता हुलसी।
मूल नखत्तर जन्में तुलसी।।4
पांच बरस सा बालक प्यारा।
जनम लेत ही राम उचारा।।5
‌देह सुहावन मुख में दांता।
परिजन सारा देखत कांपा।।6
बालकाल में भये अनाथा।
चुनियाबाइ दयो तब साथा।।7
मांगत खावत बने भिखारी।
सरस्वती की किरपा भारी।।8

अमीर खसरो के सूफी दोहे

रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।

खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।

चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।।

खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय।
पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।।

खुसरवा दर इश्क बाजी कम जि हिन्दू जन माबाश।
कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।।

उज्जवल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान।
देखत में तो साधु है पर निपट पाप की खान।।

काहे को ब्याहे बिदेस

काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
हमको दियो परदेस
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ
जित हाँके हँक जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
घर-घर माँगे हैं जैहें
हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ
घर-घर माँगे हैं जैहें
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

कोठे तले से पलकिया जो निकली
बीरन में छाए पछाड़
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

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